शरद दर्शन मोबाइल एप्लीकेशन

एप्लिकेशन उन भक्तों के लिए विकसित किया गया है जो श्री श्री 108 श्री देवीप्रसाद जी महाराज की शारदा माई की संरक्षित सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानना चाहते हैं।

मां शारदा भवानी मंदिर के बारे में : जहां गिरा था माता का हर, वही बना है मां भवानी का ये मंदिर ! मैहर का मतलब है हर! मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत के ऊपर मां शारदा का वास है मां शारदा का मंदिर पर्वत की छोटी के मध्य है ! देश भर में मां शारदा का केवल एक ही मंदिर है, आल्हा और उदल करता है मां के सबसे पहले दर्शन !

मां शारदा भवानी मंदिर के बारे में

जहां गिरा था माता का हार, वहीं बना है मां शारदा भवानी का ये मंदिर

मैहर का मतलब है मां का हार। मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। मां शारदा देवी का मंदिर पर्वत की चोटी के मध्य में। सतना कहते हैं मां हमेशा ऊंचे स्थानों पर विराजमान होती हैं। जिस तरह मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए भक्त वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं। ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के सतना जिले में भी 1063 सीढ़ियां लांघ कर माता के दर्शन करने जाते हैं। सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर स्थित माता के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है।

मैहर का मतलब है मां का हार। मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। मां शारदा देवी का मंदिर पर्वत की चोटी के मध्य में। देश भर में माता शारदा का अकेला मंदिर सतना के मैहर में ही है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमती माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।

आल्हा और उदल करते है सबसे पहले माँ के दर्शन

ऐसी मान्यता है कि आल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। आल्हा और ऊदल ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने ही इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।

कहा जाता है कि आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करते थे, जिस वजह से यह मंदिर भी शारदा माई के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं, तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।

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एप्लिकेशन उन भक्तों के लिए विकसित किया गया है जो श्री श्री 108 श्री देवीप्रसाद जी महाराज की शारदा माई की संरक्षित सांस्कृतिक विरासत के बारे में जानना चाहते हैं। यह एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर और एप्पल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। ऐप डाउनलोड करने के लिए संबंधित ऐप स्टोर पर जाने के लिए वांछित नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करें।

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